कई जीवंत उदाहरण यह दिखा रहे हैं कि जब लोग जीवन में उतार-चढ़ाव में थे तब लोग यहां आने लगते हैं और अब श्री बालाजी की कृपा से उन्होंने सफलता के...
प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें। नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद हनुमानजी की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें और आप खुद कुश के आसन पर शुद्ध ...
श्री बालाजी मंदिर यहां पिछले 100 वर्षों से है। मंगलवार और शनिवार को नियमित रूप से काफी संख्या में लोग आते हैं। इसलिए सप्ताह के इन दिनों में मेला लगता है। इस पवित्र स्थान जैसे स्थान में नियमित रूप से कई धार्मिक आयोजन होते थे।
पूजा को नित्यकर्म में शामिल किया गया है। पूजा करने के पुराणिकों ने अनेक मनमाने तरीके विकसित किए हैं। पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति के समक्ष की जाती है जिसमें गुड़ और घी की धूप दी जाती है, फिर हल्दी, कंकू, धूप, दीप और अगरबत्ती से पूजा करके उक्त देवता की आरती उतारी जाती है। पूजा में सभी देवों की स्तुति की जाती है।…
पूजा संस्कृत मंत्रों के उच्चारण के साथ की जाती है। पूजा समाप्ति के बाद आरती की जाती है। यज्ञ करते वक्त यज्ञ की पूजा की जाती है और उसके अलग नियम होते हैं। पूजा करने से देवता लोग प्रसन्न होते हैं। पूजा से रोग और शोक मिटते हैं और व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।
मंत्रार्थ का अनुसंधान करते हुए जप करना, सूक्त-स्तोत्र आदि का पाठ करना, गुण-नाम आदि का कीर्तन करना, ये सब स्वाध्याय हैं।
धर्म, दान व दया की महिमा अनंत है। प्राणी मात्र पर दया करना मंदिर निर्माण में दान देना सात पीढ़ियाें को तारने का काम करता है। संसार के सभी ग्रंथ, पंथ व संत यही सिखाते हैं। मंदिर का दान भी महत्वपूर्ण है।